आज हर जगह शिक्षा और सोशल मीडिया के अंदर युवा नौजवान सक्रिय हैं इसका अंदाज हम सभी को हैं।हमने ज्यादा राजनीति तो नहीं देखी पर इतिहास जरूर पढ़ा हैं" आजकल की राजनीति और आजकल के नेताओं के बयान हमें वापिस पूराने साँप सपेरों के युग की और लें जा रहें हैं।हमारे देश की विडंबना यह है की यहां शाकाहारी मासाहार खाने का कार्यक्रम तय कर रहें हैं, ब्रह्मचारी बच्चे पैदा करने के उपदेश दे रहें हैं और साथ में हेल्पलाइन खोल रहें हैं।और अनपढ़ नेता काॅलेज के चेयरमैन नियुक्त कर रहें हैं।बिना चुनाव जीते मंत्री बन रहें है वह भी वित्त मंत्री"कभी आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा न लेने वाले देशभक्ति का थर्मा मीटर लेकर हर जगह देशभक्ति का प्रमाण-पत्र बाँट रहें हैं।हम वास्तविक हिंदी सपोर्ट कर रहें हैं तो हम हर स्कीम का नाम इंग्लिश के अंदर क्यों रखते है, जैसे मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया....... क्या हम अंग्रेजी और अंग्रेज लोगों की भाषा को बढ़ावा नहीं दें रहें.... कुछ संघठन यह कहते हुए बच्चे ज्यादा पैदा करने की बात करते है की मुस्लिम आबादी बढ़ रहीं हैं... अब थोड़ा उन्हें 1981 से 2015 के आंकड़ों को देखकर थोड़ा विचार कर यह देखते की मुस्लिम आबादी अगले से 4.75% कम हुई है न की बढ़ी है।खैर यह सब वही लोग है जिन्हें राष्ट्र से और राष्ट्रवाद से कोई लेना देना नहीं बस अपनी रोटी तैयार रहें।आज चाइना अमेरिका जापान तरक्की की और बढ़ रहा है हम वहीं मंदिर मस्जिद हिंदू मुस्लिम के अंदर पड़े हैं.. आपस के अंदर लड़ रहें है इसका नतीजा की कुछ देश हमारी इस कमियों को अपना पक्ष करके हमारे देश को खोखला और कमजोर कर रहें हैं।आज वक्त ऐसा है जहां सांम्प्रदायिक और जातिवाद से युवा नौजवान ऊपर उठकर पढ़े लिखे और अच्छे विचारों के नेतृत्व को पसंद करता हैं वहाँ आपकी भाषा एक धर्म या एक समाज की रहेगी तो आप समाज देश को कैसे आगे ले जा सकते हो.... थोड़ा इतिहास के पिछले पन्नों को हम खगालें तो लालकृष्ण आडवाणी जी और बाल ठाकरे अशोक सिंगल मुरली मनोहर जोशी यह सब लोग एक धर्म की धर्मनिरपेक्ष देश के अंदर राजनीति करते थे, उनका हश्र आज क्या है यह बताने की जरूरत नहीं.. जब देश का संविधान सेक्युलर है हर कोई अपनी अपनी जगह सही और स्वतंत्रता से रहता है वहाँ हम ऊंच नीच भेदभाव जातिवाद क्यों करें....
थोड़ा मंथन जरूर करना और अपने आप से पूछना की हम कहाँ है ?%?
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