खान इन दिनों खासे चर्चा में हैं. उनकी आवाज का जादू
अब हॉलीवुड और बॉलीवुड के
संगीतकारों और निर्माताओं पर भी असर
दिखाने लगा है. रेतीले धोरों वाले जैसलमेर जिले के बइया
गांव के निवासी 20 वर्षीय स्वरूप को इस
बात का रत्ती भर भी इल्म न था कि एक
दिन उसे विश्वविख्यात पॉप गायिका लेडी गागा के साथ गाने
का मौका मिलेगा. मांगणियार जाति के लोक कलाकार स्वरूप पिछले साल
इंडियन आइडल के अंतिम चार में पहुंचे थे.
ताजा मामला हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीत
निर्देशक सलीम सुलेमान के तैयार किए नए
अंग्रेजी एल्बम जुडास से जुड़ा है. इसमें
लेडी गागा के साथ राजस्थानी तड़के के रूप में
स्वरूप ने एक गाना गाया है. वे बताते हैं कि उन्होंने हाल के दिनों में
कई फिल्मों के लिए गाने रिकॉर्ड कराए हैं.
इमोशनल अत्याचार फिल्म में उन्होंने नामी
संगीतकार बप्पी लहरी के
साथ गाया है. इसी तरह सन्नी देओल
की आने वाली एक नई फिल्म में उन्होंने
गायक-संगीतकार सुखविंदर सिंह के साथ एक गाना गाया
है. तमिल फिल्म बॉयज के हिंदी रीमेक में
वे ए.आर. रहमान के चेन्नै स्थित स्टुडियो में उन्हीं
के संगीत निर्देशन में एक गीत रिकॉर्ड
कराके आए हैं. तमिल फिल्म में यह गीत शंकर
महादेवन ने गाया है. हास्य अभिनेता राजपाल यादव की
फिल्म अता पता लापता में भी उन्होंने एक फन सोलो
गीत गाया है. फिल्म ओवरटाइम में एक गाना मुंबई
शहर पर है, उसे भी स्वरूप ने ही स्वर
दिया है.
इस तरह से वे आने वाली 6-7 फिल्मों के
करीब 14-15 गाने गा चुके हैं. लाइफ ओके चैनल के
सीरियल महादेव में भी उनकी
आवाज सुनने को मिलती है, जिसमें उन्होंने
शिवजी ब्याहने चले वाला गीत गाया है.
सूफी गायन पर बन रहे एलबम हाजी
बली में भी वे कुछ गीत गा
रहे हैं. कुछ और फिल्मों के लिए बात चल रही है.
स्वरूप करीब 17 देशों की 22 यात्राएं कर
चुके हैं. एक हॉलीवुड फिल्म मिल्क ऐंड ओपियम में
वे अभिनय कर चुके हैं और 2003 में जर्मन फिल्म फेस्टिवल में
उन्हें इसके लिए बेस्ट एक्टर के अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है.
लेडी गागा के गीत के साथ ही
बॉलीवुड की फिल्मों में गाए गीतों
को देश-विदेश के संगीत रसिक राजस्थानी
मौसिकी में संगीत का एक नया मिजाज देखते
हैं. इन युवा मांगणियार लोक कलाकारों के फन की बदौलत
अब तक विदेशी धुनों पर थिरकने वाली
आबादी अब राजस्थानी लोक
संगीत की आवाज और धुनों पर झूम
रही हैं. मांगणियार जाति के कलाकारों को यह कला
विरासत में मिली है. साजों को बजाने के मामले में
भी इनका जवाब नहीं. चाहे हारमोनियम
हो या खड़ताल, मोरचंग, भपंग, कमायचा, ढोल या फिर
सारंगी. रेत की लहरों पर लहकता इन
कलाकारों का संगीत चारों ओर छाने लगा है पर ये कलाकार
अपनी धरती पर ही उपेक्षित
हैं. स्वरूप की लोकöियता बढऩे से उम्मीद
है कि अब इस बिरादरी पर लोगों का ध्यान जाएगा.
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