सफी बलोच
बहुत दिनों से मन विचलित हो रहा था, अंदर ही अंदर व्याकुल भी" हमारे देश के चार नाम हैं। "भारत इंडिया हिंदुस्तान आर्यवर्त" भारतीय संविधान के अनुच्छेद एक के अनुसार हमारे देश का नाम भारत रखा गया और यह स्पष्ट शब्दों में कहा गया था कि ‘इंडिया दैट इज भारत शैल बी यूनियन ऑफ स्टेट्स’ यानि इंडिया जो कि भारत है वह राज्यों का संघ होगा...मैंने भी अच्छे-अच्छे विद्वानों के आलेख और किताबें पढ़ी हैं,जिसमें "हिन्दू" और"हिंदुस्तान"यह दोनों शब्द कैसे और क्यों आए थोड़ा आपको भी बता दूं...भारतीय संस्कृति सहिष्णुतावादी रही है, लेकिन इस सहिष्णुता ने हमें कहीं न कहीं कायर भी बनाया है।संभवत: यही कारण है कि हमने गुलामी के प्रतीकों को न सिर्फ़ आत्मसात किया, बल्कि उनका महिमामंडल करने में भी हम पीछे नहीं रहे।उदाहरण के लिए हिन्दू शब्द को ही लें।
यह हमारी गुलामी मानसिकता का प्रतीक तो है ही, इसमें गाली भी छुपी है।इतिहासकारों का मानना है कि हिन्दू शब्द ईरानियों का दिया हुआ है।ईसा पूर्व छठी शताब्दी यानी आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व ईरानियों ने पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण कर इस धारा पर कदम रखे थे, उन्होंने सिन्धु नदी के किनारे रहने वालों को हिन्दू नाम दिया।ईरानी 'स" का उच्चारण नहीं कर पाते थे और उसकी जगह 'ह" का इस्तेमाल करते थे।इतिहासकार कहते हैं कि उन्होंने सिन्धु से हिन्दू संबोधन दिया और इसी आधार पर इस देश का दूसरा नाम हिन्दुस्तान पड़ा।जैसा सनातन धर्मशास्त्र हमें आर्य और धर्म सनातन बताते हैं, किन्तु हमारे यहां सनातन(हिन्दु भाई) अब न खुद को आर्य कहते हैं और न ही सनातनी।ईरानियों द्वारा आर्यो को हिन्दू संबोधन देने के बाद ईरानी शब्दकोष में इसे अपमानजनक रूप से प्रस्तुत किया।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ईरानी शब्दकोष में हिन्दू का अर्थ चोर-लुटेरा बताया गया है।ईरानियों द्वारा दिए गए इस संबोधन को आत्मसात करने से पहले हमने यह जानने की कोशिश नहीं की, कि वे हिन्दू शब्द का क्या अर्थ बताते हैं।अपने आपको हिन्दुओं का हितैषी बताने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के डॉ. हेडगेवार ने तो दो कदम आगे बढ़कर यह नारा दे डाला - ' गर्व से कहो कि हम हिन्दू हैं।" जबकि हकीकत यह है कि हिन्दू शब्द गर्व का नहीं, बल्कि शर्म का विषय है।नाम की बात चली तो यह भी जान लेना चाहिए कि भारत और हिन्दुस्तान कहे जाने वाले इस देश का एक और नाम है इंडिया।यह शब्द अंगरेज़ों की देन है, जिसे गढ़ने से पहले उन्होंने हमसे भी अपमानजनक शब्दों को समाहित किया।हम इस शब्द को बेहद गर्व से प्रयुक्त करते हैं।पूरी दुनिया में शायद भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसके चार-चार नाम हैं। भारत वास्तविक नाम है, जबकि हिन्दुस्तान और इंडिया यह दशाते हैं कि हम कभी गुलाम भी रहे हैं । गुलामी की चर्चा हो रही इंडिया गेट का नाम आए, ऐसा हो नहीं सकता।
भारत सरकार और भारतवासी इंडिया गेट को एक धरोहर के रूप में मानते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि यह भी हमारी गुलामी का प्रतीक है। द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की ओर से लड़ी सेना के जो जवान मारे गए थे, उनकी स्मृति में इंडिया गेट का निर्माण किया गया था। स्वतंत्र भारत में इसी इंडिया गेट पर ' जय जवान " अंकित कर इसे भारतीय सैन्य जवानों की शहादत का प्रतीक बना दिया गया।नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया गया था।इस फौज के एक बड़े पदाधिकारी कर्नल जीएस ढिल्लन जीवनभर चीखते-चिल्लाते रहे कि गुलामी के इस प्रतीक को ढहा दिया जाए, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई।गुलामी के प्रतीक चिन्हों को महिमामंडित करने की परंपरा यहीं तक नहीं थमी।अपनी प्राचीनता, वैभव और संस्कृति पर हमें गर्त नहीं रहा और हमने गुलामी के दीगर प्रतीकों को आत्मसात करने में भी हिचक नहीं दिखाई।इतिहास गवाह है कि शकों ने भारत भूमि पर आक्रमण किया था।वे आक्रांता थे, जिन्होंने अपने ढंग से शासन करने के लिए शक संवत् प्रचलित किया।आज इस शक संवत् का कोई महत्त्व नहीं है और इसे कोई भी नहीं मानता है, लेकिन सरकारी कैलेण्डर में आज भी शक संवत् प्रकाशित किया जाता है। क्यों ? कारण कोई नहीं जानता।हमारे देश पर अंगरेजों ने भी राज किया और उन्होंने भी अंगरेजी सन् हम पर थोपा।हमें स्वतंत्र हुए 68/69 साल हो गए हैं, मगर अंगरेज़ी सन् से हम आज भी चिपके हुए हैं।यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने ईस्वी सन से 58 साल पहले ही विक्रम संवत प्रारंभ कर दिया था, जो यह दर्शाता है कि कालगणना के क्षेत्र में हम यूरोप और अरब जगत से आगे हैं, किन्तु हमारी सरकार और हम इसे आत्मसात नहीं करते हैं।नए ईस्वी सन के आगमन की पूर्व संध्या पर हम जश्न मनाते हैं, लेकिन अपने नववर्ष चैत्र प्रतिसाद (गुड़ी पड़वा) को कोई महत्व नहीं देते हैं।मोहर्रम और हिज़री सन् को भी भूल गए"क्या यह हमारी गुलाम मानसिकता का उदाहरण नहीं है ? ज्यादा ना लिखते हुए अंत में यही कहूंगा क्या हमें इस बात पर अब विचार नही करना चाहिए की हम हमारे देश को हिंदुस्तान कहे ? भारतवर्ष कहें ? आर्यावर्त कहें ?या इंडिया कहें ?
अंत में बाबा नागार्जुन ने अपनी विशिष्ट शैली में सवाल खड़ा किया था थोडा वह चन्द लाइन लिख दूं......
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है?
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है?
सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है
गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है
चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है
कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है
जैसे भी टिकट मिला
जहां भी टिकट मिला
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है
उसी की जनवरी छब्बीस
उसीका पन्द्रह अगस्त है
बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्त है…
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