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सोमवार, जनवरी 18, 2016

क्यों विलुप्त हो रहा हैं रेगिस्तान का जहाज ?

मारवाड़ टाइम्स के लिए सफी बलोच
क्यों विलुप्त हो रहा है रेगिस्तान का जहाज"
राजस्थान के विशेषकर जोधपुर संभाग में रेगिस्तान का जहाज अक्सर हर घर में पाया जाता था।रेगिस्तान के जहाज की आजकल आधुनिक सुविधाओं को देखते हुए शायद प्रजातियों में कमियां आ रही है।एक वक्त था जब सवारी के लिए शादी में ऊंठ को श्रृंगार कर और दूल्हे को बैठाने के लिए खेत में हल जोतने के लिए दूरदराज से कुछ सामान लाने के लिए या लंबा सफ़र करने के लिए हमेशा ऊंठ की जरुरत रहती थी।रेगिस्तान का जहाज (ऊंठ) एक ऐसा पशु था जो दो-तीन दिन तक पानी नहीं पीता तो भी चल जाता था( बताया जाता है कि ऊंठ के पेट के अंदर इतना स्थान होता है पानी रखने का कि वह एक ही बार में पानी पी लेता है और तीन चार दिन तक वह ना पिए तो भी चल जाता हैं) ऊंट का मुख्य भोजन झाल( एक हरा वृक्ष जो रेगिस्तान में पाया जाता है) चारा (राजस्थान के अंदर एक फसल बोई जाती है गवार उसको कूटने और बीज निकालने के बाद जो कूड़ा करकट और पत्तियां बचती है उसको चारा बोला जाता है)और ऊंठनी का दूध कहां जाता है ताकतवर दूध होता है इसको पीने के बाद इंसान के अंदर ताकत आती है और दूर दृष्टि(नजर) भी अच्छी रहती है। एक समय था जब हर घर के आगे ऊंठ आपको बंधा हुआ मिल जाता था।लेकिन जैसे-जैसे आधुनिक साधन आने लगे उनमें विशेषकर ट्रैक्टर हल जोतने के लिए और सफ़र में जाने के लिए गाड़ियां scorpio zoylo  bolero camper माल ढोने के लिए जीप इत्यादि इत्यादि। उनको देखते हुए हर काम जल्दी होने लगा और हर आदमी ने ऊंठ पालना और ऊंठ को रखना बंद कर दिया।कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि अक्सर ऊंठों को ईद के दिन कटाई होती है( विशेषकर बकरा ईद पर वह भी राजस्थान के कोटा संभाग में)इसलिए ऊंठों की जनसंख्या में गिरावट आई हैं। चूंकि यह तर्क रास नहीं आता इसलिए रास नहीं आता की समस्त भारत के अंदर बकरा ईद के दिन बकरे ज्यादा काटे जाते हैं, फिर भी बकरे आपको हर जगह पर दिखाई देंगे तो ऊंठ क्यों नहीं। कुछ महीने पहले राजस्थान सरकार ने ऊंठ हत्या पर जुर्माना और सजा भी मुकर्रर की है।सरकार के इस फैसले से ऊंठों की जनसंख्या में कितना फर्क आएगा यह तो वक्त बताएगा लेकिन मेरा मानना यह है कि अब वह वक्त चला गया हैं।जब किसी चीज पर प्रेम मोहब्बत और लगन से आप काम करते हो और उसकी परवरिश करते हो तब उस चीज की उत्पत्ति में वृद्धि होती है और आप किसी चीज से मनमुटाव कर देते हो फिर वह विलुप्त होती जाती हैं।आज हमें यह विचार करना होगा कि जिसका इतिहास में नाम रेगिस्तान का जहाज प्रचलित हो वह इतिहास से तो खत्म नही हो रहा है।परंतु धरातल पर कहीं नजर नहीं आ रहा है।ऊंठों की प्रजाति धूमिल हो रही है वह हर जगह से विलुप्त हो रहा है आखिर क्यों हो रहा है ? इसकी वजह आज तक कोई नहीं जान सका सिवाय कुतर्को के।काश वह दिन वापस लौट आए"बसंत मौसम के दिन सुबह बरसात हो किसान के कंधे पर हल हो ऊंठ पीछे लिया हुआ खेत की ओर चले संध्या को वापस घर आए"गांव में शादियां हो 20/25 होंठों की कतार हो हर कोई ऊंट पर चढ़कर एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ करता हो। लेकिन ऐसा संभव नहीं होगा आज आधुनिक युग है हर कोई fortuner, scorpio, bolero camper, maruti swift, ऐसी के अंदर घूमने का जमाना है।वहां कहां रेगिस्तान के जहाज की बात हो वहां कहां पशुओं का प्रेम हो बस यही कहूंगा दिन चले गए, वह वक्त चला गया अफसोस के सिवाय कुछ नहीं हैं। एक शेर याद आ रहा है जाते-जाते लिख दूं !! और अपनी कलम को विश्राम दूं !!  विचार जरूर कीजिएगा कि हमारे रेगिस्तान के जहाज को आज हम क्यों भूल गए और क्यों नहीं हम याद कर रहे हैं ?????????????
उम्र भर खाली यूँ ही दिल का मकाँ रहने दिया..तुम गए तो दूसरे को फ़िर यहाँ रहने दिया..उम्र भर उसने भी मुझ से मेरा दुख पूछा नहीं..मैंने भी ख्वाहिश को अपनी बेज़बाँ रहने दिया।

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