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सोमवार, अक्तूबर 19, 2015

कागजात का कानून चक्करों की सरकार !

सफी बलोच मारवाड़ टाइम्स
वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लगता है देश डिजिटल इंडिया टेक्नोलॉजी केवल किताबों तक सीमित हैं।केंद्र से लेकर राज्य तक सरकारों ने सिस्टम तैयार किया हैं इससे भविष्य के अंदर क्या फायदा होगा यह तो समय की तख्तियों के अंदर हैं।मौजूदा हालात और कागज़ात के चक्कर में हर इंसान परेशान हैं।बात ग्राम पंचायत स्थिर से लीजिए जिसमें सर्वप्रथम राशन कार्ड, नाम जोड़ना, नाम विच्छेद करना, अब सरपंच पदेन सचिव के पास अधिकार नहीं ! यह सब ई-मित्र पर होगा। अब यह ई-मित्र रामराज का तो है नहीं इस कलयुग का एक मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला हैं।एक राशन कार्ड के लिए एक इंसान पहले एक फार्म लेकर, सरपंच पदेन सचिव के पास जाए, फिर उसको ई-मित्र पर ले जाए, वहां पाँच सौ या तीन सौ रुपये एक नाम जुड़वाने के दुविधा अलग "!

ज्यादातर गांवों के अंदर नेटवर्क परेशानी से ई-मित्र नहीं इसलिए अनपढ़ व्यक्ति शहर तक का सफ़र और कागज़ात की रूपरेखा और कानूनी कार्रवाई के लिए इतनी जद्दोजहद करते है जिसकी सीमा नहीं।जैसे तैसे फार्म तैयार हुए ई-मित्र वाला नहीं मिलता, अगर ई-मित्र वाला मिल गया तो अब नाम कब जुड़ेगा और राशन कार्ड चालू कब होगा  यह तो गारंटी चाइना मोबाइल जैसी !!!!!!"""""""""!!!!!!!''!!!:.

भामाशाह, जनधन, नरेगा, आधार लिंक, वगैरह वगैरह ???????? हजारों कागज़ात दो साल से पब्लिक इन्हीं चक्कर के अंदर यह अंदाज नहीं लगा सकती आखिरकार यह सब कब और कैसे पूरा करें, यह सुविधा आमजन के फायदे की तो है पर इसमें समय और पैसे की जो बर्बादी है वह एक बड़ी विकट स्थिति हैं।एक बात यहां साफ़ हो जाए की अगर राजीव गांधी केंद्र का नाम बदलकर अटल सेवा केंद्र बना दिया कोई खर्चा नहीं आया ! भामाशाह, जनधन, नरेगा हजारों कागज़ात का जो भँवर झाल तैयार किया है तो हर पंचायत मुख्यालयों पर सरकारी भारतीय संचार निगम लिमिटेड का टाॅवर क्यों नहीं ?????? जिसमें हर सुविधा गाँव के अंदर मिल जाए ग्रामीण इलाकों के अंदर यह शहरों की परेशानी से तो निजात मिलें !!! आखिर यह भी तो एक सुविधा होगी, जिससे हर गाँव के अंदर एक जागरूकता आएगी... बुढ़ापे के अंदर वयोवृद्ध व्यक्ति औरत वहां तक का सफ़र आसानी से करें और इस कानूनी कार्रवाई को संपूर्ण पूर्णतः पूर्ति करें.....

कहीं कहीं आज भी एक बैंक पर समस्त पंचायत समिति या समस्त क्षेत्र निर्भर हैं, जिसमें हर वक्त भीड़ और आवाजाही रहती हो, और ज्यादातर पंन्द्रह सौ रुपये डिलीवरी के चैक के लिए महिलाएँ खड़ी दिखती हैं, पेंशनधारी वृद्धावस्था के लोगों का हुजूम बड़ा दुखद, हर वक्त कागज़ात हाथ में इधर उधर घूमते फिरते रहते हैं... बैंकों के अंदर BC लगा रखें है गाँव सेड़वा का तो BC पनोरिया का" अब वह वृद्ध वृद्धावस्था के अंदर उस BC के चक्कर खा खाकर इतना परेशान होता है की पेंशन पाँच सौ रुपये और उसका खर्चा छ: सौ रुपये हो जाता हैं।सरकारें खूब आई खूब गई लेकिन यह सरकार डिजिटल डिजिटल के चक्कर के अंदर पब्लिक को पागल कर देंगी !!

अस्पतालों की हालात, अटल सेवा केंद्र की हालात, पशु चिकित्सालय या कृषि केंद्र की हालात हर जगह पब्लिक की परेशानी देखकर लगता है की अब आओ साथ चलें की जगह आओ भाग चलें का नारा देना चाहिए !!

Safibloch86@gmail.com

मारवाड़ टाइम्स

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