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गुरुवार, सितंबर 10, 2015

परमवीर अब्दुल हमीद ही थे वो जिन्होने शेर से बाज लडाने की कहावत को सच करके दिखाया ।। मालुम था टैंक बहुत ज्यादा ताकतवर है और  अभेद भी । और हाथ मे सिर्फ एक मशीनगन ????

आज 10 सितंबर का दिन देश के इतिहास मे बडा ही महत्वपूर्ण है और खासकर उस कौम के लिये जिससे देश की सुरक्षा व मान सम्मान की जंग मे बार बार जान गंवाने के बावजूद हमेशा देशभक्ति के सबूत मांगे गये लेकिन सबूत मांगने वाले देशभक्त महानुभावों ने कभी इतिहास के पन्नों को उलटना जरूरी ही  नही समझा । फिर चाहे वो आजादी के इतिहास के वो पन्ने ही क्यों ना हो जिनमें सैकडों मुस्लिम शहादत का जाम पीकर बिना सबुत दियें गहरी नींद सो गये । 10 सितंबर ?????  क्या हुआ था इस दिन ?? क्यों याद रखे हम और आप इस दिन को ,भाई ये तो तारीख है । एक के बाद एक और फिर नया कैलेण्डर । तो सुनों देशभक्तों और देशभक्तों के भक्तों ,यह तारीख तुम्हारी देशभक्ति का सामान तौलने की तारीख है । यह तारीख इसी देश की उस  कौम से ताल्लुक रखती है जिसें तुमने हर वक्त पाकिस्तान जाने की नसीहत दी । हां हम पाकिस्तान जायेंगे और उन्हे याद दिलायेंगे 10 सितंबर ।नही भुला होगा पाकिस्तान अपने वो 7 टैंक जो 10 सितंबर की तारीख मे ही नेस्तोनाबूद किये दिये अब्दुल हमीद ने । टैंक जो अपने आप भी ताकत रखते थे किसी भी हमले से सुरक्षित रहने की लेकिन फिर भी उडा दिये ??? किसने,कैसे उडाये ये टैंक । जरा इतिहास को एक बार फिर पढलो भाई । कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही ,यह फैसला भी फिर सुना दो । क्या मिलेगा इतिहास मे?? आंखे जरा ढंग से खोलियेगा भाई , आपको ये नाम कम ही पढने मे आते होंगे ना । दिख गया क्या अब्दुल हमीद ।। अबे इज्जत से बोल " परमवीर अब्दुल हमीद" ।।

परमवीर अब्दुल हमीद ही थे वो जिन्होने शेर से बाज लडाने की कहावत को सच करके दिखाया ।। मालुम था टैंक बहुत ज्यादा ताकतवर है और  अभेद भी । और हाथ मे सिर्फ एक मशीनगन ???? यह हथीयारों की नही उसूलों और ईमान की जंग थी जिसमे मरना मंजूर किया और घुस गया दुश्मन के खेमे मे अकेले सिर्फ एक मशीनगन के साथ और एक एक करके उडा डाले 7 टैंक । @ 7 टैंक / कम से कम 70 सैनीक @ क्या गणीत है आपकी ??? ""नहीं भाई सिर्फ 7 टैंक नही उडाये उसने तो कुछ बचाया था ,उसने तो बहुत कुछ बढाया था "" उसने बचाया था हिन्दुस्तान का सम्मान ,उसने हौसला बढाया था उन सैनीकों का जो दुश्मन के टैंक के सामने हताश हो चुके थे और फिर टुट पडे थे हमीद को दुश्मन के खेमे की ओर एक जीप ओर एक मशीनगन के साथ जाते देखकर और दुश्मन के खेमे का 7वे टैंक को उडाने के साथ ही अब्दुल हमीद भी नही रहे ।

फिर सरकार ने उनकी बहादुरी को देखते हुए मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा ,उनके गांव मे उनके नाम से स्कुल खोला गया ,उनके सम्मान मे डाक टिकट जारी की और तो और उनके गांव धामुपुर का नाम हमीदधाम करने की घोषणा भी कर डाली सरकार ने ।लेकिन यहां भी वही ढाक के तीन पात?? आज भी गांव का नाम नही बदला और शहीद की बेवा आज भी गुहार लगा रही है उसके सम्मान के लिये जिसने देश का सम्मान बचाया था।। लेकिन फिर भी बार-बार **पाकिस्तान चले जाओ *** की आवाज  ही आती है आज भी देश के महान भक्तों की जुबां से ।

युनुस चोपदार के दिल से

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