आज के मोहब्बत के दौर में कल के लिए नफरत पैदा करता "रश्क".......
जादम खान सरगीला की कलम से
जी हाँ आज तक जो दौर चल रहा था वो मोहब्बत का दौर था अमन और चैन का दौर था, अमन और ईमान का दौर था, प्यार और भाईचारे का दौर था, खुशहाली और कामयाबी का दौर था....
मगर अचानक क्या हुआ है की ये दौर मोहब्बत से नफरत में बदल गया!! क्या हुआ की दुआ की जगह बददुआ निकलने लगी!! क्या हुआ की अमन की जगह अ+मन हो गया है!! क्या हुआ की 'हम' और 'हमारा' शब्द का मायना तेरे-मेरे में बदल गया!!
क्या हुआ की दिल की तंग गलियों में जहाँ बेशुमार प्यार और मोहब्बत निकला करती थी आज उन गलियों रश्क रंजिश और नफरत निकलने लगी है!!
कहीं किसी की नजर लग गयी या किसी की साजिश की शिकार हो रहे हैं??
हम जिस मजहब से तालुक रखते है वो दुनिया का सबसे अच्छा और पवित्र धर्म है और सभी धर्मों का बादशाह है और जाहिर सी बात है की इसके दुश्मन भी बहोत ज्यादा है...
मगर हम किस दुश्मन की बात कर रहे है उस दुश्मन की जिसको हम सब जानते है या उस दुश्मन की जो हमारे अंदर छुपा हुआ है....??
जहाँ तक मेने सुना है हमारा धर्म इस्लाम हमारा कुरान ऐ पाक, हमारे मौलवी,आलिम,हाजी,गाजी,पीर फ़क़ीर, औलिया वली सभी यही कहते है की किसी के धर्म की बुराई मत करो तो जाहिर सी बात है हमें हमारे धर्म की बुराई भी नही करनी चाहिए....मगर फिर क्यों हम अपने मुर्शिदों की बुराई कर रहे है???
हम में से कई भाइयों के मुर्शिद जीलानी होंगे तो कई के पागारा, तो कईयों के मखदूम शाह होंगे जिनका वास्ता सांगड़ा शरीफ से होगा या हाला शरीफ से होगा, लूणी शरीफ से होगा या शुजा शरीफ और सेहलाऊ शरीफ और ना जाने कहाँ कहाँ से होगा!!
मगर क्यों हम एकदूसरे पर लांछन लगाने पर तुले हुए है और आले रसूल की गुस्ताखी कर रहे हैं...
ये हम जानबूझकर कर रहे है या भूल से कर रहे है या फिर इस आधुनिक युग में राजनीतिक चक्काचौन्ध में मशगूल हो कर एक साजिश और आपसी रंजिश और रश्क की बदौलत कर रहे हैं.....
मगर जो भी कर रहे है ये हमारे आने वाले कल के लिए एक नफरत की दीवार बना रहे है और एक भय जिल्लत नफरत की जिंदगी की तैयारी कर रहे हैं क्योंकी हमारे पहले से आरएसएस जैसे भगवे दुश्मन हमारे खिलाफ साजिश की जाल बिछाये बैठे है और हम खुद ब खुद चलकर इस साजिश का शिकार बन रहे हैं...
एक बात याद रखें की हमारी औकात आले रसूल की औलाद के क़दमों के नीचे की रेत के बराबर भी नही हैं फिर हम क्यों उनकी शान में गुस्ताखी कर रहे हैं बेशक वो जो अच्छी और इस्लामिक बातों का हमें उपदेश देते हैं उन्हें अपने निजी जीवन में उतारने की हर संभव कोशिश करें मगर इसका अर्थ ये नही हुआ की हमें उनकी गलत बातों पर ध्यान देकर आपसी दुश्मनी और नफरत को मोल लेना है....
आज जो भी पीरों का मसला चल रहा है उसके जिम्मेदार हम सब है क्योंकि आजतक हम सबने उनकी हर एक गलत बात बिना सोचे समझे शेयर की जिससे नफरत बढ़ती गयी और हालात इस कदर हुए की हम खून खराबे पर उत्तर आये और कोर्ट कचहरी तक पहुँच गए...
मगर अभी भी वक्त है हमें ऐसी चीजों से सावधान रहने का जिससे की हमारी नफरत बढ़ने लगे और हमारे दुश्मन जो हम पर निशाना साधे बैठे है उन्हें मौका मिल जाये हमारा मखोल उड़ाने का और हमें बदनाम करने का....
किसी भी घराने से तालुक रखने वाला कोई भी पीर खून खराबे और नफरत की कतई बात नही करेगा अगर हम सब एक हो जाये...हमें जरुरत है इस तंग वक्त और हालात में संयम रखने की और इस नाजुक वक्त में अपना ईमान सलामत रखने की ताकि हम और हमारी आने वाली पीढ़ी नफरत की दीवार में कैद ना होकर एक अमन चैन के वातावरण में मोहब्बत और भाईचारे की खुली सांस ले सके ताकि एक बार फिर हमारे दिल की गलियों से नफरत के खून की जगह प्यार और अपनापन के खून की सप्लाई हो सके ताकि हम गर्व से सीना तानकर कह सके की हम " मुसलमान" है और तेरे- मेरे की भावना एक बार फिर "हम" में बदल जाये...
कुछ गलत लिखा हो तो माफ़ करें
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