मारवाड़ टाइम्स के लिए रामचंद्र यादव
आज कल राजस्थान में बड़े स्तर पर
खींचातानी माहौल चल रहा है
इसी दौर में प्रदेश के कदद्वार नेताओ के
दिल्ली दौरे बहुत चर्चाओ में है । कभी
गहलोत के केंद्र में जाने की तो कभी सचिन
पायलट के पीसीसी
चीफ पद छोड़ने की खबरे भी
न्यूज़ पेपरो और चेनलों के स्टुडियो में काफी गरमाई के
साथ होने लगी है ।
इसी के मध्यनजर बिहार चुनाव के बाद बड़े बदलाव के
संकेत मिल चुके है ।
राजस्थान के लोगो में इस बात की चर्चा भी
काफी अहम है ''गहलोत के बिना काँग्रेस
वापसी नहीं है '' बात भी
सही है की गहलोत ने जिस प्रकार से
एक अच्छे प्रशासनिक के तौर पर सामाजिक कल्याण की
सरकार चलाई वो काबिले तारीफ रही है ,
भले हो सीटो के मामले में वो बहुत कम
रही हो पर इसका दोष अकेले गहलोत पर थोपना
भी मूर्खता होगी , अगर काँग्रेस
आती तो उसका श्रेय लेने के लिए सेकड़ों नेताओ
की लाइन दिल्ली तक लग जाती
पर हार होने पर कोई भी नेता ज़िम्मेदारी
लेने के लिए तैयार नहीं थे इसी क्रम मे
गहलोत ने सबसे आगे बढ़कर अपना बड़प्पन दिखाते हुए हार
की जिम्मेदार खुद पर ली । हालांकि
अबकी बार तो केंद्र की काँग्रेस में
भी 545 से मात्र 44 पर आकार सिमिट गई इसलिए
राजस्थान की 200 में से 21 सीट कोई
गंभीर नहीं है । अगर गहलोत
फ्री हेंड रहते तो आज पार्टी का यह
हाल नहीं रहता पर विधानसभा चुनावो में भाजपा को मात
देने से अधिक तो congress नेता गहलोत को गिराने मे लगे थे ।
आज जब पीसीसी
चीफ हो या भले ही अन्य प्रादेशिक नेता
प्रदेश के किसी भी जिले के दौरे पर होते
है गहलोत के द्वारा शुरू की गई योजनाओ को लेकर
अपने भाषण से भाजपा पर वार करते है भले हो उनके भाषण में
'गहलोत सरकार' न होकर 'काँग्रेस सरकार' शब्दो का समावेश हो ।
आज गहलोत के द्वावा शुरू की गई मुफ्त
दवा,पेन्सन,मेट्रो,रिफायनरी, के साथ सेकड़ों जनकल्याण
की योजनाएँ 'संजीवनी ' बनकर
काम कर रही है ।
राहुल गांधी ने इसी
खींचातानी पर प्रदेश के कुछ नेताओ को
दिल्ली बुलाया जिसमे 10 में से 7 नेताओ का कहना है
की गहलोत को भुला कर राजस्थान में काँग्रेस
की वापसी नहीं
की जा सकती , क्यूँ की अगर
गहलोत को हटाने की बात हुई तो उनके द्वारा तैयार
किए गए नेता नाराज होकर शून्य बैठ गए तो इसका नुकसान
पार्टी को बहुत होगा । गहलोत ने राजस्थान
की राजनीति मे सबसे अधिक नेता तैयार किए
आज कोने-कोने में उनके द्वारा बनाए गए नेता आपको मिल जाएगे ।
आज गहलोत का जलवा देखने के लिए आप उनके दौरे को देख
सकते है अगर वो बिना जानकारी भी
कहीं जाते है तो हजारो की
भीड़ उनके लिए इकट्टा हो जाती है
वही प्रदेश कॉंग्रेस के लिए किसी सभा के
लिए बहुत मेहनत करने के बाद भी ऐसा संभव
नहीं होता है ।
सचिन पायलट भी अब राजस्थान की
राजनीति से तंग से लग रहे है की क्यूँ
की यहाँ पर राजनीति के लिए बहुत
पसीना बहाना पड़ता है , गुटबाजी मिटाने
की बजाए बढ़ती ही जा
रही है । पिछले दिनो 3 दिवसीय संभाग
सवाद में जिस प्रकार से प्रदेश से आए नेताओ ने अभद्रता और
फीडबेक दी वो भी उनको रास
नहीं आई , जानकार लोग बताते है की
अब सचिन वापस केंद्र में जाकर काम करना चाहते है । उनके 2
साल के कार्यकाल में कोई खास उपलब्धि भी
नहीं रही है ।
सीपी जोशी भी
अब फिर से गहलोत से नजदीकीय बना
रहे है जो की बड़े बदलाव की आहट से
कम नहीं है । पायलट ने कभी
गुटबाजी वाली राजनीति देखि
नहीं उनको राजनीति विरासत के तौर पर
मिली इसीलिए वो भी इन बातों से
काफी आहत नजर आ रहे है साथ ही
उनके ऊपर जातिविसेष की राजनीति के आरोप
भी लगने लगे है। राजस्थान के वरिष्ठ नेताओ से
उनकी दूरी काफी चर्चा में
रहती है ।
केंद्र के वरिष्ठ नेता और सोनिया गांधी मिलकर फिर से
गहलोत को बड़ी ज़िम्मेदारी देने का मानस
बना चुके है इसी के चलते उनको महासचिव,नेता
परतिपक्ष के साथ कई बड़े पदो के ऑफर मिल चुके है पर
गहलोत राजस्थान में बड़ी पारी खेलना
चाहते है ।
AICC ने यह भी पता लगवाया की
राजस्थान में कितने खेमे सक्रिय है और किस खेमे का दबदाबा सबसे
अधिक है , जानकार लोग बताते है की गहलोत के
पक्ष में ही रिपोर्ट बन रही है इसलिए
यह कहना कोई गलत नहीं होगा की
राजस्थान में गहलोत के बिना काँग्रेस की वापस संभव
नहीं है ।
'' # Ramchandra_Yadav ''
( मैंने यह आर्टिकल एक पत्रकार नजरिए से लिखा है, वर्तमान में
जो चल रहा है उसका एक छोटा से अंकन मात्र है ) —
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